वांछित मन्त्र चुनें

उ॒त त्या ह॒रितो॒ दश॒ सूरो॑ अयुक्त॒ यात॑वे । इन्दु॒रिन्द्र॒ इति॑ ब्रु॒वन् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta tyā harito daśa sūro ayukta yātave | indur indra iti bruvan ||

पद पाठ

उ॒त । त्याः । ह॒रितः॑ । दश॑ । सूरः॑ । अ॒यु॒क्त॒ । यात॑वे । इन्दुः॑ । इन्द्रः॑ । इति॑ । ब्रु॒वन् ॥ ९.६३.९

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:63» मन्त्र:9 | अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:31» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:9


बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) और (इन्दुः) जो पुरुष अपने प्रेम से सब पुरुषों के हृदयों को स्निग्ध करे, उसका नाम यहाँ इन्दु है। (इन्द्रः) जो सर्व ऐश्वर्य युक्त परमात्मा है, (इति) उसको ऐसे नामों से (ब्रुवन्) कथन करता हुआ जो पुरुष (यातवे) अपनी शारीरिक यात्रा के लिये (त्याः) उन (हरितः) पाप को नष्ट कर देनेवाली (दशसूरः) दश प्रकार की वृत्तियों को (अयुक्त) जोड़ता है, वह परमानन्द को प्राप्त होता है ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष अपनी इन्द्रियवृत्तियों को सब ओर से हटाकर एक परमात्मा में लगाते हैं, वे परमानन्द को प्राप्त होते हैं। इस मन्त्र में परमात्मा ने इन्द्रियवृत्तियों को रोककर ईश्वर में लगाने का उपदेश किया है। इसका नाम ईश्वरयोग है। “पराञ्चि खानि व्यतृणत् स्वयम्भूस्तस्मात् पराङ्पश्यति नान्तरात्मन्” परमात्मा ने इन्द्रियों को बहिर्मुखी बनाया है, इसलिये वे बाहर की ओर जाती हैं। इनके रोकने का उपाय उक्त मन्त्र में बतलाया है ॥९॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि च (इन्दुः) उनत्ति प्रेमातिशयेन प्रसन्नं करोतीति इन्दुः सर्वाह्लादकः (इन्द्रः) सम्पूर्णैश्वर्ययुक्तः परमात्मा (इति) उक्तनामभिः (ब्रुवन्) कथनं कुर्वन् यः पुरुषः (यातवे) स्वीयशारीरिकयात्रायै (त्याः) ताः (हरितः) पापनाशिनीः (दश) दशविधाः (सूरः) वृत्तीः (अयुक्त) योजयति स परमानन्दतां याति ॥९॥